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आलाहज़रत एक नज़र में🌹

आलाहज़रत एक नज़र में🌹



        रास्ता हम खुल्द का हरगिज़ न छोड़ेंगे

         हम तो दीने मुस्तफा हरगिज़ न छोड़ेंगे

       छूट जाए ये जहाँ और टूट जाए दम मगर

         मसलके अहमद रज़़ा हरगिज़ न छोड़ेंगे 

*



💫आला हज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु किसी एक ज़ात का नाम नहीं बल्कि वो एक ही वक़्त में एक नज़रिया था,अक़ीदा था,मसलक था,मशरब था,अंजुमन था,कांफ्रेंस था,लाइब्रेरी था,कुतुबखाना था,इल्मो हिक़मत का आफताब था,शरियतो तरीकत का माहताब था,मुफ़्ती था,मुदर्रिस था,मुफक्किर था,मुकर्रिर था,मुनाज़िर था,मुसन्निफ था,मुअल्लिफ था,मुफस्सिर था,मुहद्दिस था,मअकूली था,मनकूली था,अदीब था,खतीब था,फसीह था,बलीग था,फक़ीह था,वो ज़ाहिद नहीं बल्कि ज़ुहद था,वो आलिम नही बल्कि इल्म का मौजे मारता हुआ समंदर था 


↘️आला हज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बरैली शरीफ में 10 शव्वाल 1272 हिजरी बामुताबिक 14 जून 1856 ईसवी को एक इल्मी घराने में पैदा हुये



 आपका शजरए नस्ब युं है, अहमद रज़ा खान बिन नक़ी अली खान बिन रज़ा अली खान बिन काज़िम अली खान बिन आज़म खान बिन सआदत यार खान बिन सईद उल्लाह खान


आप 6 भाई बहन थे,नाम हस्बे ज़ैल हैं


इमाम अहमद रज़ा खान 

मौलाना हसन रज़ा खान 

मौलाना मुहम्मद रज़ा खान

हिजाब बेगम ज़ौजा वारिस अली खान

अहमदी बेगम ज़ौजा शाह ईरान खान

मुहम्मदी बेगम ज़ौजा किफायत उल्लाह खान


* आपने बिस्मिल्लाह ख्वानी के दिन ही लाम अलिफ पर ऐतराज़ करके अपनी विलायत का ऐलान कर दिया 


* आपने 3.5 साल की उम्र में एक अरबी से उसकी ज़बान में फसीह गुफ़्तुगू की 


* आपने 6 साल की उम्र में एक बड़े मजमे में खड़े होकर 2 घंटे मुसलसल मिलादे मुबारक पढ़ा 


* आपने 8 साल की उम्र में 'हिदायतुन नहु' की अरबी शरह लिख डाली


* आपने 13 साल 10 महीने और 5 दिन में ही तमाम उलूम से फराग़त हासिल करके पहला फतवा दिया


* आलाहज़रत के उस्ताज़े गिरामी हस्बे ज़ैल हैं


मक़तब के उस्ताद

आपके वालिद हज़रत मौलाना नक़ी अली खान

हज़रत मिर्ज़ा ग़ुलाम क़ादिर बेग

हज़रत मौलाना अब्दुल ओला साहब

हज़रत सय्यद शाह अबुल हुसैन नूरी

आपके पीरो मुर्शिद हज़रत सय्यदना शाह आले रसूल मारहरवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु


* जिसने 22 साल की उम्र में बैयत की तो खुद मुर्शिदे बरहक़ ने फखरिया इरशाद फरमाया कि आज तक मुझे इस बात की फिक्र थी कि कल जब बरोज़े क़यामत मौला तआला मुझसे पूछता कि ऐ आले रसूल तू दुनिया से क्या लाया तो मैं अपना कौन सा अमल पेश करता पर जबसे मैंने अहमद रज़ा को बैयत किया तबसे मेरी ये फिक्र दूर हो गयी अब अगर क़यामत में मौला तआला मुझसे पूछेगा कि ऐ आले रसूल तू दुनिया से क्या लाया तो मैं अहमद रज़ा को पेश कर दूंगा


* तमाम उल्माये इस्लाम ने जिसे मुजद्दिद तस्लीम किया और इमामुल अइम्मा का लक़ब दिया 


* जिसको अरब के शेखुद दलायल हज़रत मौलाना सय्यद मुहम्मद सईद मग़रिबी अलैहिर्रहमा खुद 'या सय्यदी' कहकर बुलाते थे


* जिसको हरमैन शरीफैन के उल्माये किराम ने सुन्नियत की पहचान बताया और फरमाया कि हम हिंदुस्तान से आने वाले हाजियों के सामने इमाम अह्मद रज़ा का ज़िक्र करके देखते हैं कि अगर उसके चेहरे पर खुशी के आसार आये तो सुन्नी समझते हैं और अगर चेहरे पर कदूरत झलकी तो समझ लेते हैं कि ये बिदअती व गुमराह है 


🌹 जिसको तमाम उल्मा व औलियाये वक़्त ने ज़माने का हाकिम समझा और आलाहज़रत का लक़ब दिया और खुद वारिस पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने आलाहज़रत को अपनी मसनद पर बिठाया और आपको आलाहज़रत कहा 


🌹जिसने दूसरे हज के दौरान अपनी माथे की आंखों से जागते हुये हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का दीदार किया 


* जिसने 105 उलूम पर 1300 से ज़्यादा किताबें लिख डाली 


* अल्लाह तआला का वो मुक़द्दस बन्दा 25 सफर 1340 हिजरी बा मुताबिक 28 अक्तूबर 1921 को अपने मअबूदे हक़ीक़ी से जा मिला "इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन" 


(📚हयाते आला हज़रत📚)

(📚 तजल्लियाते मुस्तफा रज़ा📚)

(📚 सवानेह आला हज़रत📚 رضی اللہ تعالیٰ عنہ)

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